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தமிழில் ஸ்ரீ அன்னபூர்ன ஸ்தோத்ரம் படிக்க
रचन: आदि शङ्कराचार्य
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्य रत्नाकरी
निर्धूताखिल घोर पावनकरी प्रत्यक्ष माहेश्वरी ।
प्रालेयाचल वंश पावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 1 ॥
नाना रत्न विचित्र भूषणकरि हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहार विलम्बमान विलसत्–वक्षोज कुम्भान्तरी ।
काश्मीरागरु वासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 2 ॥
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मैक्य निष्ठाकरी
चन्द्रार्कानल भासमान लहरी त्रैलोक्य रक्षाकरी ।
सर्वैश्वर्यकरी तपः फलकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 3 ॥
कैलासाचल कन्दरालयकरी गौरी–ह्युमाशाङ्करी
कौमारी निगमार्थ–गोचरकरी–ह्योङ्कार–बीजाक्षरी ।
मोक्षद्वार–कवाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 4 ॥
दृश्यादृश्य–विभूति–वाहनकरी ब्रह्माण्ड–भाण्डोदरी
लीला–नाटक–सूत्र–खेलनकरी विज्ञान–दीपाङ्कुरी ।
श्रीविश्वेशमनः–प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 5 ॥
उर्वीसर्वजयेश्वरी जयकरी माता कृपासागरी
वेणी–नीलसमान–कुन्तलधरी नित्यान्न–दानेश्वरी ।
साक्षान्मोक्षकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 6 ॥
आदिक्षान्त–समस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरा त्रिपुरेश्वरी त्रिनयनि विश्वेश्वरी शर्वरी ।
स्वर्गद्वार–कपाट–पाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 7 ॥
देवी सर्वविचित्र–रत्नरुचिता दाक्षायिणी सुन्दरी
वामा–स्वादुपयोधरा प्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 8 ॥
चन्द्रार्कानल–कोटिकोटि–सदृशी चन्द्रांशु–बिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्नि–समान–कुण्डल–धरी चन्द्रार्क–वर्णेश्वरी
माला–पुस्तक–पाशसाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 9 ॥
क्षत्रत्राणकरी महाभयकरी माता कृपासागरी
सर्वानन्दकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी ।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 10 ॥
अन्नपूर्णे सादापूर्णे शङ्कर–प्राणवल्लभे ।
ज्ञान–वैराग्य–सिद्धयर्थं बिक्बिं देहि च पार्वती ॥ 11 ॥
माता च पार्वतीदेवी पितादेवो महेश्वरः ।
बान्धवा: शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥ 12 ॥
सर्व–मङ्गल–माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ–साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोஉस्तु ते ॥ 13 ॥